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मात्र 60 घंटे में मंदिर को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया ,आखिर क्यों ,जानिए पूरी कहानी

मात्र 60 घंटे में मंदिर को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया The temple was converted into a mosque in just 60 hours




अढ़ाई दिन का झोंपड़ा (Dhai din ka jhopra ) राजस्थान के अजमेर नगर में स्थित यह एक मस्जिद है। इस मस्जिद का इतिहास लगभग 800 वर्ष पूराना है केरल स्थित चेरामन जुमा मस्जिद के बाद अढाई दिन का झोपड़ा सबसे पुरानी मस्जिद है।यह राजस्थान की पहली मस्जिद है तथा भारत की दूसरी प्राचीन मस्जिद है । 

मज्जिद को अढ़ाई दिन का झोपड़ा क्यो कहां जाता है ?
Why does Majjid go for a two and a half day hut?

लोगों का मानना है कि इस मस्जिद के निर्माण में ढ़ाई दिन का समय लगा था, इसलिए इसे अढ़ाई-दिन का झोपड़ा कहा जाता हैं। मोहम्मद गोरी ,तराई के द्वितीय युद्ध (1192ई.) के पश्चात् अजमेर से गुजरा था। तब वह अजमेर में स्थित मंदिरो से इतना भयभीत हुआ कि उसने मन्दिरों को तुरंत नष्ट करके उसके स्थान पर मस्जिद बनाने की इच्छा प्रकट की। उसने अपने गुलाम सेनापति को सारा काम 60 घंटे में पूरा करने का आदेश दिया ताकि लौटते समय वह नई मस्जिद में नमाज अदा कर सके।

इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इसे फकीरों की वजह से अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहना शुरू किया गया बहुत सालों तक अजमेर में ये अकेली मस्जिद थी. बाद में 18वीं सदी में फकीर उर्स (मुसलमान संत की निधन-तिथि पर होने वाला समारोह) के लिए यहां इकट्ठा होने लगे ये लगभग ढाई दिनों तक चलता था इसी समय से मस्जिद को ये अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम मिला ।

राजा विगृहराज चतुर्थ के दौरान बनाया गया था संस्कृत विद्यालय
Sanskrit school was built during Raja Vigraharaj IV.

राजा विगृहराज चतुर्थ  (1153-63) अर्णोराज चौहान के पुत्र थे ।जिसे बीसलदेव भी कहा जाता है। इन्होंने हरीकेली नाटक की रचना की। इनके दरबारी कवि ने ललितविगृहराज की रचना की। राजा विगृहराज चतुर्थ ने अजमेर में एक संस्कृत मठ का निर्माण करवाया जिसे आज अढ़ाई दिन का झोपड़ा के नाम से जाना जाता है।अढ़ाई दिन का झोपड़ा एक मस्जिद है जिसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था।‌‌‍ अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद की दीवारों पर आज भी ललितविगृहराज की पंक्तियां आज भी उत्कीर्ण हैं।

1193 ईवी गोरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेरठ और दिल्ली को जिता।1193 ईवी से दिल्ली भारत में गोरी के राज्य की राजधानी बन गई। कुतुबुद्दीन ऐबक 1194 ईवी में अजमेर को जिता ओर वहां पर हिन्दू और जैन मंदिरों को नष्ट करके उनके अवशेषों से दिल्ली में कुव्वात-उल- इस्लाम मस्जिद बनवाई । बाद में 1196 ईवी में अजमेर में संस्कृत विद्यालय के स्थान पर अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद बनवाई।

मस्जिद को बनने में ढ़ाई दिन का समय कैसे लगा?
How did it take two and a half days to build the mosque?

मस्जिद को बनने में ढ़ाई दिन का समय कैसे लगा तो कहानी इस प्रकार है माना जाता है कि जब मोहम्मद गोरी तराई के युद्ध के बाद अजमेर से गुजर रहा था तब उसे हिंदू धार्मिक स्थल दिखाई दिये तब गोरी ने अपने गुलाम सेनापति कुदुबुद्दीन ऐबक को आदेश दिया कि इनमें से सबसे सुंदर स्थल पर मस्जिद बना दी जाए. गोरी ने इस कार्य को करने के लिए 60 घंटों यानी ढाई दिन का समय दिया. गोरी के दौरान हेरात के वास्तुविद अबु बकर ने इसकी रूपरेखा तैयार किया जिस पर हिंदू ही कामगारों से 60 घंटों तक लगातार बिना रुके काम कराया गया और जिसके फलस्वरूप मस्जिद तैयार किया ढाई दिन में पूरी इमारत तोड़कर खड़ी करना एक प्रकार कल्पना मात्र ही था इसलिए मस्जिद बनाने के लिए उसमें थोड़े बदलाव कर दिए गए जिससे की वहां नमाज पढ़ी जा सके । मस्जिद के प्रमुख मेहराब पर उकेरे साल से पता चलता है कि मस्जिद का रुपांतरण  1199 ईसवीं में में हो चुका था. इसलिए अढ़ाई दिन का झोपड़ा देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है।

ऐसी थी संस्कृत कॉलेज के समय इमारत
Such was the building during Sanskrit College

राजा विगृहराज चतुर्थ के समय निर्मित  विद्यालय वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण हैं इस खंडहरनुमा इमारत में 7 मेहराब एवं हिंदू-मुस्लिम कारीगिरी के 70 खंबे बने हैं तथा छत पर भी शानदार कारीगिरी की गई है। ये चौकोर था, जिसके हर किनारे पर डोम के आकार की छतरी बनी हुई थी. वैसे इस इमारत के इतिहास के बारे में अलग-अलग जानकारियां हैं. जैसे जैन धर्म को मानने वालों का कहना है कि इसको 660 ईसवीं में जैन उत्सव पंच कल्याणक मनाने के लिए इसे एक जैन तीर्थ की तरह तैयार किया था. 
साल 1875 से लेकर अगले एक साल तक इसके आसपास पुरातात्विक जानकारी के लिए खुदाई चली. इस दौरान कई ऐसी चीजें मिलीं, जिसका संबंध संस्कृत और हिंदू धर्मशास्त्र से है. इन्हें अजमेर के म्यूजियम में रखा गया है. फिलहाल इस मस्जिद को इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का बेजोड़ नमूना माना जाता है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से सैलानी आते हैं.




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