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Sri kampahareswar temple | south indian temples | श्री कम्पहरेश्वर मंदिर

Sri kampahareswar temple | south indian temples | श्री कम्पहरेश्वर मंदिर


kampahareswar temple


प्राचीन काल में मंदिरों के निर्माण पत्थरों को तराश कर किया जाता था।जिनकी दीवारों पर लियोग्राफ (leogryph, पौराणिक जानवरों जैसे शेर का मुंह, हाथी का भाग) इत्यादि चित्रकारी तथा चित्रकारी के साथ मंदिर के इतिहास और राजाओं और रानीयों के रूप समान मूर्तियों को भी दर्शाया जाता था।

पत्थरों से मंदिर बनाना सर्वप्रथम पल्लव शासकों ने शुरू किया मंदिरों को रथ का रूप देना पल्लवो कि मुख्य विशेषताएं थीं।चोल शासकों ने भी पल्लव शासकों की तरह अपनी वास्तुकला शैली बनाना शुरू कर दिया।

ऐसी है श्री कम्पहरेश्वर मंदिर की संरचना

श्री कम्पहरेश्वर टेंपल (Sri kampahareswar temple) मध्यकालीन चोल शासकों के द्वारा निर्मित हिन्दू मंदिर हैं। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है
मंदिर में भगवान भगवान शिव के रूप सरबेश्वर, आधा शेर आधा जानवर देवता का मंदिर भी है।  उनके चार-सशस्त्र और तीन पैरों वाली मूर्तिकला को नरसिंह के पैरों के नीचे संघर्ष करते हुए दिखाया गया है।

श्री कम्पहरेश्वर मंदिर (Sri kampahareswar temple) तमिलनाडु के दक्षिण भारत के तंजावुर (Thanjavur) जिले के थिरुवुवनम में स्थित है, जो मइलादुथुराई-कुंभकोणम मार्ग पर स्थित है। मंदिर को चोल शासक कुलोत्तुंग चोल तृतीय के द्वारा बनवाया गया था।जिसे चोलो द्वारा निर्मित चार कृतियों में से एक और अंतिम कृति माना जाता है।ये कृतियां इस प्रकार है। प्रथम वृहदेश्वर मंदिर, द्वितीय गंगकोंडांचोलपुरम और तृतीय ऐरावतेश्वर मंदिर

मंदिर की वास्तुकला तंजावुर में स्थित वृहदेश्वर मंदिर,
दारासुरम में स्थित एरावतेश्वर मंदिर और तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले में स्थित गंगैकोण्ड चोलपुरम् मंदिरों से मिलती जुलती है।

मंदिर को वास्तुकला की द्रविड़ शैली में बनाया गया है
बृहदेश्वर मंदिर के समान, राजगोपुरा कि तुलना में मंदिर का व्यास बहुत अधिक है। मंदिर के गर्भगृह के 130 फ़ीट ऊंचे गोपुरम में कई उत्कृष्ट नक्काशीदार मूर्तियां हैं। आंतरिक गर्भगृह एक चौकोर आकार कि संरचना है। अर्थात वर्गाकार है। विमाना के छः आधार है और इनकी दीवारों पर पुराणों के दृश्यों कि मुर्तियां है। मंदिर के अग्रसर भाग को एक रथ के समान सदृश बनाया गया है जो लगभग 120 फिट ऊंचा है। रथ कि दीवारों और साथ ही मंदिर रामायण के दृश्यों को दर्शाते हैं।

श्री कम्पहरेश्वर मंदिर का पौराणिक महत्व

भगवान् विष्णु द्वारा नरसिंहवतार, असुर हिरण्यकश्यप को नष्ट करने के लिए जाना जाता है।जो अपने आप को भगवान के रूप में घोषित करने की ललक से भरा हुआ था।

असुर हिरण्यकश्यप का भगवान नरसिंह द्वारा वध कर दिया गया लेकिन भगवान नरसिंह का क्रोध शान्त नहीं हुआ।

ब्रह्माण्ड (सृष्टि) उनका क्रोध को सहन नहीं कर पा रही थी तब सभी देवता गण भगवान शिव के प्रति समर्पित हो गये। भगवान शिव के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने पक्षी सरभ का रुप धारण किया। 

भगवान शिव के इस रूप को शरभावतार कहा जाता है।
भगवान शिव ने आधा स्वरुप मृग (हिरन) का धारण किया और बाकि शरीर शरभ पक्षी का 

शरभ पक्षी के बारे में पौराणिक मान्यता यह है कि यह ऐसा पक्षी था जो आठ पैर वाला तथा अत्यन्त बलशाली पक्षी था।

भगवान शिव अपना रोद्र रूप दिखाते हुए नृसिंह भगवान को अपनी पूंछ में लपेट कर उन्हें ब्रह्माण्ड में ले गये।जहां पर भगवान नृसिंह कि क्रोधाग्नि शांत हुई।






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