मामल्लपुरम शहर और मन्दिर | Mamallapuram city and temple

मन्दिर शहर का केंद्र बन जाता। कांचीपुरम, चिंदबरम और रामेश्वरम जैसे कई शहर आज भी फलफूल रहे हैं। यहां आज भी देशभर से भक्त आते हैं। रेस्तरां में खाते हैं। होटलों में रहते हैं।टैक्सी में सफर करते हैं। मूर्तियां और साड़िया खरीदते है। आज भी ये शहर के लोगों के लिए आजिविका का हिस्सा है। साथ ही संगीत और नृत्य के कार्यक्रम होते रहते है।
रामेश्वरम के रामनाथ स्वामी मंदिर में, हमें रामायण की कहानी याद आती है।और तंजावुर के वृहदेश्वर में दीवारों पर भरतनाट्यम की मुद्राएं तराशी हुई है। बहुत से मन्दिरों की दीवारों पर चित्रकारी और राज्य के इतिहास को, राजाओं और रानीयों को तराशा हुआ है।
ये सब शुरू होता है पल्लवो से। जिन्होंने ने पहली बार पत्थर से मन्दिर बनाए।तब तक मन्दिर छोटे होते थे।
ईंटों और लकड़ी से या फिर चट्टान को तराश कर बनाते थे। अंजना और एलोरा की गुफाएं इसके उदाहरण हैं। पहले गुफाएं बनाईं गई। फिर बौद्व भिक्षुओं ने उनकी दीवारों पर सुन्दर चित्रकारी की। पल्लव वास्तुकारों ने ऐसी तकनीक विकसित कर ली थी जिससे पत्थर के मन्दिर बनाएं जा सकते थे।उस समय सिमेन्ट तो था नहीं। वो पत्थर को इस तरह तराशते थे कि दो पत्थर एक दूसरे के साथ अटक्कर मजबूती से जुड़ जाते थे। ये मन्दिर आज भी खड़े हैं।
मामल्लपुरम का समुद्र तट पर बना मन्दिर सबसे पूराना है,यह आज भी ज्यों का त्यों है। उसकी ऊंची चोटी आसमान छूती लगती है। एक समय में सात ऐसे मन्दिर थे। इनमें से छः मन्दिर डूब गए। दीवारों पर भगवानों की , नाचती महिलाओं की और सैनिकों की मार्च की सुन्दर नक्काशी हुईं है।साथ में नंदी की प्यारी मूर्तियों मेड़ पर बैठी आपका स्वागत कर रही होती हैं।

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