केदारनाथ मंदिर वास्तुकला, इतिहास | Kedarnath Temple Architecture in Hindi
केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और मंदिर के निर्माण को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। इस मंदिर को सर्वप्रथम किसने बनाया इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन ज्ञात इतिहास अनुसार 3500 ईसापूर्व पांडवों ने इसका निर्माण किया, फिर 8वीं सदी में शंकराचार्य ने और बाद में 10वीं सदी के मध्य में इसका पुन:निर्माण कराया मालवा के राजा भोज ने।
केदारनाथ मंदिर वास्तुकला, Kedarnath Temple Architecture
यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है। अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है। सभामंडप विशाल एवं भव्य है। उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है। गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं।
85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है केदारनाथ मंदिर। इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। मंदिर को 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है। यह आश्चर्य ही है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। खासकर यह विशालकाय छत कैसे खंभों पर रखी गई। पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। यह मजबूती और तकनीक ही मंदिर को नदी के बीचोबीच खड़े रखने में कामयाब हुई है।केदारखंड की एक कथा बहुत प्रचलित है – नारायण की प्रार्थना पर भगवान शिव ने केदारखंड में निवास करने का वरदान दिया I यहां केदार नामक राजा शासन करते थे। उन्ही के नाम पर यह क्षेत्र केदारखंड कहलाता था राजा केदार भगवान शिव के भक्त थे। राजा की प्रार्थना पर भगवान शिव ने केदारखंड का रक्षक बनना स्वीकार किया और भगवान शिव कहलाने लगे केदारनाथ।
शिव पुराण में कहा गया है कि केदारनाथ में जो तीर्थयात्री जाते है, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और अपने सभी पापों से मुक्ति मिलती है I कहा जाता है कि महाभारत युद्ध जीतने के बाद पांडवों पर परिवार के लोगों की हत्या का दोष लग गया और पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। वे भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पहुंचे। पांडवों से नाराज भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए बैल बन गए। लेकिन पांडवों ने शिव को पहचान लिया और भीम ने बैल बने शिव जी का कूल्हा पकड़ लिया। बैल बने शिव जी का वही कूल्हा शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गया। यही एक कारण है कि आज भी पशुपतिनाथ मंदिर में बैल के अगले और केदरनाथ में पिछले हिस्से की पूजा की जाती है।
केदारनाथ के बारे में एक खास बात लिखी गई है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा सफल नहीं होती है I वैज्ञानिकों के अनुसार केदारनाथ मंदिर 400 साल तक बर्फ के नीचे दबा था लेकिन फिर भी उसे कुछ नहीं हुआI
केदारनाथ मंदिर में 2013 में 16-17 जून को आई आपदा के समय केदारनाथ मंदिर में कई चमत्कार भी हुए। एक बड़ा पत्थर मंदिर के पीछे पानी के साथ आया और मंदिर के थोड़ी सी पीछे रुक गया। जब पानी और मलबे का बहाव आया तो उस चट्टान ने बहाव को दो तरफ मोड़ दिया और मंदिर को आंच तक नहीं आने दिया। इस चमत्कार के बाद इसका नाम भीम शिला रख दिया गया I
मंदिर के जगमोहन में द्रौपदी सहित पाँच पाण्डवों की विशाल मूर्तियाँ हैं I मंदिर के पीछे कई कुण्ड हैं, जिनमें आचमन तथा तर्पण किया जा सकता है

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